जब माँ के लिए गणपति बप्पा को बनना पड़ा था स्त्री
बुधवार का दिन बप्पा को समर्पित होता है। इस दिन गणेश जी को खुश करने के लिए भक्त व्रत रखते हैं और उनका पूजन कर कथा पढ़ते हैं। गणेश जी के कई रूप हैं लेकिन क्या आप बप्पा के स्त्री रूप के बारे में जानते हैं? शायद नहीं। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं इसके बारे में। जी दरअसल इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
क्यों किया स्त्री रूप धारण?- गणेश जी के स्त्री रूप लेने की कहानी माता पार्वती एवं अंधक नामक एक दैत्य से जुड़ी है। आइए आपको बताते हैं। कथा के अनुसार एक बार अंधक नामक दैत्य माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी बनाने के लिए इच्छुक हुआ। अपनी इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए उसने जबर्दस्ती माता पार्वती को अपनी पत्नी बनाने की कोशिश की, लेकिन मां पार्वती ने मदद के लिए अपने पति शिव जी को बुलाया। अपनी पत्नी को दैत्य से बचाने के लिए भगवान शिव ने अपना त्रिशूल उठाया और राक्षस के आरपार कर दिया। लेकिन वह राक्षस मरा नहीं, बल्कि जैसे ही उसे त्रिशूल लगा तो उसके रक्त की एक-एक बूंद एक राक्षसी 'अंधका' में बदलती चली गई।
भगवान को लगा कि यदि उसे हमेशा के लिए मारना हो तो उसके खून की बूंद को जमीन पर गिरने से रोकना होगा। माता पार्वती को एक बात समझ में आई, वे जानती थीं कि हर एक दैवीय शक्ति के दो तत्व होते हैं। पहला पुरुष तत्व जो उसे मानसिक रूप से सक्षम बनाता है और दूसरा स्त्री तत्व, जो उसे शक्ति प्रदान करता है। इसलिए पार्वती जी ने उन सभी देवियों को आमंत्रित किया जो शक्ति का ही रूप हैं। ऐसा करते हुए वहां हर दैवीय ताकत के स्त्री रूप आ गए, जिन्होंने राक्षस के खून को गिरने से पहले ही अपने भीतर समा लिया। फलस्वरूप अंधका का उत्पन्न होना कम हो गया। लेकिन इस सबसे भी अंधक के रक्त को खत्म करना संभव नहीं हो रहा था। आखिर में गणेश जी अपने स्त्री रूप 'विनायकी' में प्रकट हुए और उन्होंने अंधक का सारा रक्त पी लिया। इस तरह से देवताओं के लिए अंधका का सर्वनाश करना संभव हो सका।