ऐतिहासिक परशुरामेश्वर महादेव मंदिर में उमड़ कर कांवड़ियों का जनसैलाब
बागपत । सावन की शिवरात्रि पर ऐतिहासिक परशुरामेश्वर महादेव मंदिर में कांवड़ियों का जन सैलाब उमड़ पड़ा। कांवड़ियों ने सुबह से ही जलाभिषेक शुरू कर दिया। दिन चढ़ते-चढ़ते कतार लंबी होती गई। एक से बढ़कर एक कांवड़ आकर्षण का केंद्र बनी हैं। बागपत के साथ ही मेरठ, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, दिल्ली और शामली के कांवड़ियों ने भी देवाधिदेव का अभिषेक कर प्रसन्न किया। शनिवार को शिवरात्रि पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच भगवान आशुतोष का जलाभिषेक चल रहा है। परशुरामेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित जयभगवान शर्मा ने बताया कि आज शाम 7.32 बजे विधि विधान से झंडा पूजन किया जाएगा। करीब एक घंटे के पूजन के बाद शाम 8.32 बजे झंडारोहण होगा। उसके बाद मुख्य जलाभिषेक शुरू हो जाएगा। वहीं, शुक्रवार शाम 7.17 बजे त्रयोदशी लगते ही कांवड़ियों के सैलाब ने मंदिर की ओर से रुख कर दिया था। करीब दो किलोमीटर लंबी लाइन में लगाकर महादेव का जलाभिषेक किया। आज शाम 8.32 बजे चतुर्दशी लग जाएगी, जिसके बाद मुख्य जलाभिषेक होगा।
भोले बाबा को रिझाने के लिए उनके भक्त अनोखे प्रयास करते हैं। कोई माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर लाता है, तब कोई अपनी कांवड़ से देशभक्ति का संदेश देता है।
बागपत के पुरामहादेव गांव स्थित परशुरामेश्वर महादेव मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। महादेव का यह प्राचीन मंदिर है। श्रावण और फाल्गुन मास में गंगा के पवित्र जल से भगवान आशुतोष का श्रद्धालु अभिषेक करते हैं। भक्तों की यहां सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सामान्य दिनों में भी भक्तों का तांता लगा रहता है।
मान्यता है कि जहां पर परशुरामेश्वर पुरामहादेव मंदिर है, यहां काफी पहले कजरी वन हुआ करता था। इसी वन में जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका सहित अपने आश्रम में रहते थे। प्राचीन समय में एक बार राजा सहस्त्र बाहु शिकार करते हुए ऋषि जमदग्नि के आश्रम में पहुंचे। रेणुका ने कामधेनु गाय की कृपा से राजा का पूर्ण आदर सत्कार किया। राजा उस अद्भुत गाय को बलपूर्वक ले जाना चाहते थे। सफल न होने पर राजा ने गुस्से में रेणुका को ही बलपूर्वक अपने साथ हस्तिनापुर महल में ले जाकर बंधक बना लिया। राजा की रानी ने उसे मुक्त करा दिया।