चरनोई भूमि पर कब्जे और भूख से सड़को पर लावारिस भटकती गौमाता
सनातन के ढोंगियों की कलई खोलती हकीकत
- चरनोई भूमि पर कब्जे और भूख से सड़को पर लावारिस भटकती गौमाता
(धीरज चतुर्वेदी छतरपुर बुंदेलखंड)
सरकारी तंत्र की मिली भगत से छतरपुर शहर के पन्ना रोड पर 270 एकड़ चरनोई भूमि को माफिया लील गये। जिसके नतीजन हजारों की संख्या में गौवंश सड़को पर घूम रहा है। जो स्वयं सड़क दुर्घटना का शिकार हो रहा है और इंसानी मौत का कारण भी।
छतरपुर जिले में भू माफिया का सिक्का चलता है। जिस शासन प्रशासन के तंत्र को रक्षा करनी चाहिए वह न्योछावर में नाचते दिखाई दिये है। तभी सरकार की बेशकीमती जमीने, तालाब, कुआँ इत्यादि सभी इस न्योछावर फेंक चट कर लिये गये।
सनातन धर्म में गाय को माँ का दर्जा दिया गया। आज यही गौमाता लावारिस घूम रही है। मुख्य सवाल यही है कि आखिर क्यों? जवाब सामने आते है कि सनातन के पाखंडियो ने ही गौमाता का निवाला छीन लिया है। गौवंश के चारागाह चरनोई भूमि को कब्ज़ा लिया गया। ऐसा ही मामला छतरपुर शहर के पन्ना रोड पर राजसी काल से सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज चरनोई भूमि का है जो अब माफियाओ के कब्जे में है। जानकारी अनुसार पन्ना रोड पर 270 एकड़ जमीन चरनोई भूमि के रूप में दर्ज रही। 1958-59 के बंदोबस्त के रिकार्ड में यह जमीन मध्यप्रदेश शासन दर्ज थी। जिसे बाद में सरकारी तंत्र की मिलीभगत से महारानी के नाम दर्ज कर दिया गया। चौकाने वाला आरोप है कि यह महारानी की मृत्यु बाद उनके नाम दर्ज हो गई। फिर छतरपुर महाराज ने इस जमीन को दान और रजिस्ट्री के जरिये दूसरों को बेच दी। यह पूरा खेल रियासतों के विलयीकरण के बाद लेख इन्वेएंट्री के आधार पर हुआ। गौर तलब है कि इस विलयीकरण के बाद लेख इन्वेएंट्री में राजाओं को मिली सम्पत्ति और सरकार को मिली सम्पत्ति के बंटवारे का उल्लेख किया गया था। सरकार को जो सम्पत्ति मिली वह शासन के नाम दर्ज नहीं हो सकी। जिसका लाभ माफियाओ को मिला। छतरपुर शहर में लोक निर्माण विभाग के करीब 200 बंगलो की बेशकीमती सम्पत्ति पर इसी तरह माफियाओ ने कब्ज़ा ठोंक रखा है। यही हाल शासन की अन्य कीमती जमीनों का है। जो सरकारी तंत्र की मिली भगत से माफियाओ ने हड़प ली। जब चरनोई जमीनों पर कब्जे होंगे तो गौवंश तो सड़को पर लावारिस घूमेगा। आज जब पूरे देश में सनातन धर्म का हल्ला बोल है तब ऐसे मामले इस तरह के हल्ला बोल को पाखंड ही करार देते है। गौवंश का लावारिस सड़को पर भटकने जैसे परिदृश्य सनातन के मूल धर्म को चोट पंहुचाते है। वहीं सनातन के उन ढोंगियों की भी कलई खोलते है जिनके कब्जो से गौमाता भूख से कहरा रही है।