होलिका की शव यात्रा के साथ मुहल्ले में चंदा लेने निकलती है बच्चों की टोली
परंपरा को कायम रखती बच्चों की अनोखी होली
होलिका की शव यात्रा के साथ मुहल्ले में चंदा लेने निकलती है बच्चों की टोली
सत्यनिधि त्रिपाठी (संजू)
छतरपुर, होली का त्योहार वैसे तो रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इसे अन्याय और असत्य पर धर्म और सत्य की जीत के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है । मगर छतरपुर शहर में वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी अनोखी होली का आयोजन हर्षोल्लास से किया जाता है ।
शहर के चौक बाजार क्षेत्र में पीढ़ियों से होली को अनूठे अंदाज में मनाया जाता है । होलिका दहन की रात्रि में होलिका दहन के बाद बच्चों द्वारा पीढ़ियों की परंपरा को जीवित रखते हुए होलिका की शव यात्रा को मुहल्ले में निकाला जाता है। बड़ी संख्या में बच्चे होलिका का पुतला बनाकर उसे अर्थी पर लिटाकर हुडदंग करते हुए मुहल्ले में निकलते हैं और लोग इन बच्चों के साथ होली खेल कर उन्हें चंदे के रूप में कुछ रूपये देते हैं । जिससे बच्चे रंग गुलाल अबीर आदि खरीद कर होली का आनंद उठाते हैं ।
पीढ़ियों से चली आ रही होलिका की शव यात्रा की परंपरा
छतरपुर शहर के चौक बाजार क्षेत्र के वार्ड नं 10 में होलिका की शव यात्रा निकालने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है । इस क्षेत्र के उम्र दराज हो चुके निवासी बताते हैं कि यह परंपरा कब शुरू हुई किसने शुरू की इस की जानकारी तो नहीं है मगर हमने भी अपने बचपन में एसे ही होली खेली है । मुहल्ले की पुरानी पीढ़ी ने बताया कि जब हमारी पीढ़ी होलिका की शव यात्रा निकालती थी तब उत्साह कुछ और ही रहता था । तब हम शव यात्रा ढोल नगाड़ों के साथ निकालते थे। कई बार लोगों को भ्रम हो जाता था कि कोई सच मुच की शव यात्रा निकल रही है । रास्ते से निकलने वाले लोग रास्ता छोड़ कर खड़े होकर प्रणाम भी करते थे। बाद में जब उन्हे पता चलता था कि ये तो होली का हुडदंग है तो खूब हंसते थे ।
समय के साथ थोड़ा परिवर्तन हुआ है मगर फिर भी नई पीढ़ी ने इस हुडदंग को जीवित रखा है। परंपरा के साथ त्योहारों से खत्म हो रही रौनक को इस पीढ़ी ने संभाल के रखा है ।